Manmarjiyan
कितना मुश्किल होता है।
कितने अलग है हम
कितने अलग है हम
मैं ऐसी क्यों हूं!
हमे में से ना जाने कितने ही लोग अपने ही बारे में ये सवाल करते होंगे, मैं ऐसी/ऐसा क्यों हूं?
अपने आप को कभी तो बहुत अच्छा महसूस करते होंगे, कभी लगता होगा ' यार! मैं कितनी बुरी/ बुरा हूं। और ना जाने कितने तरीके के सवाल करते होंगे।
मुझे भी बहुत बार अपने ही बारे में बहुत से सवाल होते हैं।
कभी कभी जो सवाल मैं खुद से करती हूं, वो कुछ ऐसा है.....
मैं ऐसी क्यों हूं
मैं अच्छी हूं मैं बुरी हूं ,
ना जाने मैं कैसी हूं,
पर मैं ऐसी क्यों हूं।
ऐसा लगता है
ना किसी के दर्द का एहसास ,
ना किसी कि खुशी का हिस्सा,
बहुत ही अजीब है ये किस्सा।
मुझे सब खुशी चाहिए,
सभी का साथ भी चाहिए
तो मुझे देना क्यों नहीं है,
क्यों मैं बस अपने बारे में सोचती हूं।
कितनी अजीब हूं मैं,
ना जाने कैसी हूं मैं,
बुरी हूं मैं, पर थोड़ी सी अच्छी भी तो हूं मैं,
ना जाने कैसी हूं
पर मैं ऐसी क्यों हूं?
इस तरह के सवाल घूमते फिरते आ जाया करते हैं,
पर मुझे लगता है, हमे इस तरह के सवालों में ज़्यादा उलझने से बेहतर हो कि हम, सवालों को सही करें।
और सवाल की जगह जवाब दें, मै जैसी हूं मुझे पसंद हूं।।
फिर वही सवाल....
फिर वही सवाल, फिर वही जवाब
क्या हुआ?? कुछ नहीं।।
की वही दबी सी आवाज़
कुछ तो बोलो,
जब कुछ हुआ ही नहीं तो क्या बोलूं
नहीं कुछ तो हुआ है
नहीं कुछ नहीं हुआ है
बता दो प्लीज
अरे नहीं हुआ है कुछ
ठीक है ....
कुछ समय बाद......
फिर वही सवाल, फिर वही जवाब
क्या हुआ है??? कुछ भी तो नहीं!!
रात वही, दिन वही
छोटी - बड़ी रातों में
बातों की कमी!!
ठीक हो?? हां ठीक हूं।।
चलो अच्छा है, और बात समाप्त।।
कुछ दिन बाद....
फिर वही सवाल, फिर वही जवाब
ठीक हो?? हां ठीक हूं,
के साथ ही किसी डर का आगाज़
कहां तक जाओगे??
किसके साथ आओगे??
कई सारे सवाल, और सवालों का सैलाब
पर बस एक ही जवाब, और बस एक ही जवाब
कुछ नहीं हुआ , सब ठीक है।।
कुछ महीनों बाद......
फिर वही सवाल, फिर वही जवाब
फिर वही सवाल, फिर वही जवाब।।
और ना जाने कब तक
वही जवाब, वही सवाल।।
जिससे तुम ना वाकिफ हो
क्या कुछ ऐसा कह गुजरूं
जिससे तुम ना वाकिफ हो
तुम्हारी रूह तक व्याकुल हो उस सोच से
जिससे मेरा भी कुछ गहरा ताल्लुक़ हो
तुम रहो उस छोर पे
तो मैं रहूं इस छोर पे
पर जब भी भूल से मुलाकात हो
इस कदर मुखातिब हो एक दूसरे से
जैसे कोई चंद्रमा बिखेरे चांदनी को
क्या कुछ ऐसा दिखला दूं
जिससे तुम ना वाकिफ हो
तुम पल पल सोचो
उस क्षण के बारे में जिसमें ज़र्रा भर भी
कहीं तो मेरी कशिश बाकी हो
क्या कुछ कह गुजरूं
जिससे तुम ना वाकिफ हो ।।
खुदा, ईश्वर, अल्लाह, रब वाहेगुरु
राहगीरों से मुलाक़ात
राहगीरों से मुलाक़ात
कितना मुश्किल होता है।
कितना मुश्किल होता है हंसना, जब हंसी न आए कितना मुश्किल होता है रोना, जब आंसू सूख जाए जीना भी हो और जी भी न पाएं मरना न हो फिर भी मरे सा एहस...
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एक दूजे से कितने अलग है हम एक धागे के दो छोर की तरह आपस से कितने दूर हैं हम बिल्कुल आसमां और ज़मीन की तरह कैसे होगा मिलन, तू ही बता एक है धा...
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