माँ
माँ हँसती है तो पूरा घर हँसता है,
माँ रोती है तो पूरा घर मायूस हो जाता है,
माँ हमें लोरी सुनाती है, माँ हमें गोद में सुलाती है,
तो फिर हमें माँ की छोटी सी बात क्यों बुरी लग जाती है?
माँ अपने हाथों से खिलाती है, अपने सीने से लगाती है,
तो फिर माँ ही क्यों दूर कर दी जाती है?
माँ नहलाती है, सजाती है, सँवारती है,
तो फिर हर घर में माँ क्यों नहीं सँवारी जाती है?
माँ की सारी खुशियाँ हमसे है,
तो फिर हमारी सारी खुशियाँ माँ क्यों नहीं बन जाती है?
माँ हमें देख मुस्काती है, माँ हमें देख खिल जाती है,
तो फिर हम माँ को क्यों नहीं समझ पाते हैं?
माँ को तक़दीर लिखने का हक़ होता तो आज सारी खुशियाँ हमारी होती,
ये कोई कहावत नहीं सच्चाई है, माँ के दिल की गहराई है,
हम तो प्यारे माँ के ,
तो हमें सबसे प्यारी हमारी माँ क्यों नहीं बन जाती है?